Part 1.Privatization is Good or Bad for India
यह तो आप जानते ही होंगे कि अब एयर इंडिया टाटा ग्रुप का हो चुका है लेकिन आप यह जानते हैं कि इस दिल के असल में नीम कब पड़ी थी अगर आप सोचेंगे तो यह डील जनवरी 2022 में कंप्लीशन का डील इसके लगभग तीन दशक पहले ही पड़ गई थी सिर्फ एयर इंडिया नहीं बल्कि 1956 में बनी जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी वाली लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन यानी कि एलआईसी जो जल्द ही प्राइवेटाइज्ड होने वाली है उसके आने वाले भविष्य भी 1991 में खींच दी गई थी अब आप पूछेंगे तो वह कैसे तो चलिए अब यह कहानी शुरू से शुरू करते हैं
नमस्कार आदाब सत श्री अकाल आ गया है आपका हॉस्टल दोस्त कुमार अनुभव लेकर ताजातरीन एक टॉपिक जो की बहुत ही आवश्यक है सबको जाना कि क्या प्राइवेटाइजेशन सही है या गलत इसको शुरू से शुरू करते हैं इसके लिए आपको इस ब्लॉग पोस्ट को फॉलो कर लेना है ऐसे ही आपको हॉट टॉपिक्स यहां पर मिलेगा धन्यवाद
दोस्तों आजादी के बाद इंडिया ने अपने लिए एक ऐसा इकोनामिक मॉडल को चुना जो कैपिटल इज ऑफ सोशलिज्म क्रॉस बृज था इसलिए इसे मिक्स्ड इकोनामिक मॉडल कहा गया हालांकि यह कहने के तो विकसित इकनोमिक थी लेकिन यह अपने आप को सोशल इनसे ज्यादा ही लगाव रखते थे और इस फील्ड का पहला एविडेंस मार्च 1950 में प्लानिंग कमीशन के फॉर्मेशन के साथ ही देखने को मिल गया था जिसके साथ ही यह समझ में आ गई थी की इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ और डेवलपमेंट से रिलेटेड सारे डिसीजंस और सेक्शंस गवर्मेंट अपने हाथ में ही रखने वाली है हालांकि तीसरे से वक्त भी गई वैसे वैसे गांव में इकोनामिक मॉडल और गवर्नमेंट पॉलिसी में अंतर देखने को मिले यही कारण है कि जहां 1947 में देश एक सोशलिस्ट में और एक तरह के क्लोज इकोनॉमिक्स मॉडल के साथ अपने सफर पर निकला था उसमें लगभग 4 दशक के बाद ही सोशल इस स्केल से दूर हट कर एलपीजी रिफॉर्म्स के रूप में अपने लिए एक नई राह चली थी
दोस्तों हम जब भी लिबरलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन ऑर्गेनाइजेशन के रिफॉर्म्स की बात करते हैं तो ऐसा मानते हैं जैसे इंडियन इकोनॉमिक्स और उसके गवर्नमेंट अचानक ही करवट बदल दी हो लेकिन रियलिटी में ऐसा नहीं है यह बात सही है कि 1991 में एलपीजी जैसा ग्राउंड ब्रिंगिंग स्टेप लेते हुए अपने क्लोमिक्स मॉडल में बहुत से बदलाव लिए लेकिन इन इकोनामिक मॉडल के बदलावों में ग्राउंड पर ग्राउंड पर इंप्लीमेंट करने के लिए अलग-अलग फेसिस देखने को मिलते हैं अगर ऐसा इसलिए जैसा कि हमने बताया हमारे देश को सोशलिज्म की राह पर चलते हुए 4से ज्यादा का दशक से ज्यादा समय हो गया था ऐसे में कोई भी चेंजेज रातों-रात इंप्लीमेंट नहीं हो सकते चलिए आज इन तीनों में से एक रिफॉर्म्स जिसे प्राइवेटाइजेशन कहा गया इसके बारे में पूरी जानकारी डिटेल में लेते हैं और उसके साथ ही हम यह भी समझने की कोशिश करेंगे कि हमारी इकोनॉमी आने वाले समय में किस तरह प्राइवेटाइजेशन की और बढ़ती देखी जा सकती है ।
बिफोर एलपीजी रिफॉर्म्स
दोस्तों जिस देश में सफिशिएंट इंडस्ट्रियल कैपेसिटी बिल्डिंग करने के लिए 1956 में गवर्नमेंट ने इंडस्ट्रियल पॉलिसी रेजोल्यूशन यानी कि आईपीआर अडॉप्ट किया था उसमें यह बात क्लियर मेंशन थे इस देश में एक सोशलिस्ट पैटर्न सोसाइटी को फॉर्मुलेट करने के लिए राज्यों को न्यू इंडस्ट्रियल टेकन को सेट करने के लिए एक भी डोमिनेंट और डायरेक्ट रोल प्ले करना होगा इस इंडस्ट्रियल पॉलिसी रेजोल्यूशन यानी आईपीआर के मुताबिक इंडस्ट्रियल सेक्टर्स का 4 क्लासिफिकेशन कर दिया गया।
जिसमें शेड्यूल ए के इंडस्ट्रीज को राज्यों के रिजर्व रखा गया वही शेड्यूल बी में वैसे इंडस्ट्रीज को कवर किया गया जहां कॉमेंट्स ही नीड्स ड्रग्स एंटीबायोटिक्स से जुड़ी इंडस्ट्रीज को सेटअप कर सकते थे इसके अलावा सभी बचे हुए इंडस्ट्रीज को प्राइवेट सेक्टर के लिए ओपन कर दिया गया इस आईपीओ के एडॉप्शन के साथ ही गवर्मेंट ने बहुत CPSEs का नींव रख दी जो इकोनामिक मे जल्द एक्सपेंड हुआ
यही नहीं 1965 से 1985 प्राइवेट सेक्टर की बहुत सी कंपनी वेरियस एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के द्वारा राष्ट्रीयकरण कर दिया गया ।
इनमें से आज की बहुत से पेट्रोलियम सेक्टर सीपीएसई जैसे इंडियन ऑयल लिमिटेड कॉर्पोरेशन , हिंदुस्तान पैट्रोलियम लिमिटेड कॉर्पोरेशन , एचपीसीएल, भारतीय पेट्रोलियम लिमिटेड कॉरपोरेशन, बीपीसीएल इत्यादि भी शामिल है।
हालांकि इस लार्ज स्केल राष्ट्रीयकरण के पीछे गवर्नमेंट द्वारा अलग-अलग रीजन दिए गए जैसे कभी उनके पुअर परफॉर्मेंस को देखते हुए पब्लिक इंटरेस्ट को आधार बनाया गया तो कभी पूर्वांचल कल टेक्स्ट यह सोच ऐसी फॉरेन कंपनीज अंडर टेकिंग होने से और यह तब था जब 1980 की शुरुआत थी और यह बात 1980 आते-आते रिलाइज कर ली गई थी इन पब्लिक सेक्टर फॉर्म्स में प्रोडक्शन उनकी कैपेसिटी के मुताबिक सिग्निफिकेंट ली बहुत ही कम था उसके पीछे भी कई कारण थे जैसे कि आउटडेटेड टेक्नोलॉजी , ओवर एंप्लॉयमेंट, लोअर प्रायोरिटी फॉर फ्रेश इन्वेस्टमेंट ड्यू टू प्रेजेंट इन कॉम्पिटेटिव सेक्टर्स, पुअर प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ,और हाई डेट इक्विटी ।
Written by Kumar Anubhav...
In English Context....
Part 1:-Privatization is Good or Bad for India
You must have known that Air India has now belonged to the Tata Group, but you know that when Neem was actually in this heart, if you think, then this deal was completed in January 2022, almost three decades before it. It was not only Air India, but with the life formed in 1956, the Life Insurance Corporation, that is, the future of LIC, which is going to be privatized soon, was also pulled in 1991, now you ask, how is that? Now let's start this story from the beginning
Hello Adab Sat Sri Famine has come, your hostel friend Kumar, taking experience, the latest topic which is very important, everyone should know whether privatization is right or wrong, let's start it from the beginning, for this you have to follow this blog post like this Only you will get hot topics here thank you
Friends, after independence, India chose such an economic model for itself, which was the capital is of socialism cross bridge, hence it was called mixed economic model, although it was a developed economic to say, but it itself was more attached to social. The first evidence of this field was seen with the formation of the Planning Commission in March 1950, with which it was understood that all the decisions and sections related to the growth and development of the Indian economy were going to be kept in the hands of the government. Although the time passed from the third, there was a difference between the economic model and the government policy in the village, that is why in 1947, where the country had set out on its journey in a socialist and with a kind of close economics model, it had almost 4 decades. Only after moving away from this social scale, a new path was taken for itself in the form of LPG reforms.
Friends, whenever we talk about the reforms of Liberalization Privatization Organization, it seems as if Indian economics and its government have suddenly changed, but in reality it is not so, it is true that in 1991 by taking ground-bringing step like LPG. Took many changes in the clomix model but changes in these economic models see different phases to be implemented on the ground on the ground if it is because as we told that our country is more than 4 decades walking on the path of socialism It has been more than a while, in such a situation, no changes can be implemented overnight. That how our economy can be seen growing further towards privatization in the coming times.
Before LPG Reforms
Friends, in the country where the government had adopted the Industrial Policy Resolution i.e. IPR in 1956 to do efficient industrial capacity building, it had clear mentions in it, to formulate a socialist pattern society in this country, the states should set up a new industrial technology. For this, a single dominant and direct role will have to be played. According to this Industrial Policy Resolution (IPR), 4 classifications of industrial sectors have been done.
In which the industries of Schedule A were kept in the reserve of the states, the same Schedule B covered those industries where only comments could set up industries related to Needs Drugs Antibiotics, apart from this all the remaining industries were opened to the private sector. With the adoption of this IPO, the government has laid the foundation of many CPSEs, which quickly expanded into the economic system.
Not only this, from 1965 to 1985, many private sector companies were nationalized by the various Act of Parliament.
These include many of today's petroleum sector CPSEs such as Indian Oil Limited Corporation, Hindustan Petroleum Limited Corporation, HPCL, Bhartiya Petroleum Limited Corporation, BPCL etc.
However, behind this large scale nationalization, different regions were given by the government, such as the public interest was made on the basis of their poor performance, and sometimes the Purvanchal Kal text was due to such foreign companies undertaking and this was when in the 1980s. It was the beginning and this thing was released by 1980. Production in these public sector forms was very less as per their capacity. There were many reasons behind it like outdated technology, over employment, lower priority for fresh investment due. To be present in competitive sectors, poor project management, and high debt equity.
Written by Kumar Anubhav...
0 Comments
You have a any Doubt please comment.