Unseen Story about Lal bahadur shastri


 Topic:- Unseen Story about Lal bahadur shastri

जानिए कुछ रोचक किस्से शास्त्री जी से जुड़े हुए।(Unseen Story about Lal bahadur shastri)

Unseen Story about Lal bahadur shastri

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नमस्कार,आदाब, ससरिकार आ गया है आपका होस्ट एंड दोस्त ''कुमार अनुभव'' आज हम इस ब्लॉग मे जानगे लाल बहादुर शास्त्री जी से जुडी कुछ रूचक तथ्य जिसमे की हम जानेगे की जब शास्त्री जी कसी काम से ट्रैन से मुंबई जा रहे थे तो उस ट्रैन के डिब्बा में कूलर लगा है तो शास्त्री जी ने ट्रेन के डिब्बे से निकलवाया कूलर l साथ ही साथ ही एक और रोचक तथ्य जानेगे की जब पत्नी के लिए खरीदी दुक्कन की सबसे सस्ती साड़ी, जानिए कुछ रोचक किस्से l(Unseen Story about Lal bahadur shastri)

लाल बहादुर शास्त्री जी भारत देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर,1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) जिले में हुआ था। एक साधारण सी कद-काठी वाले शास्त्री जी ने सार्वजनिक जीवन में श्रेष्ठता के जो प्रतिमान स्थापित किए वे बहुत ही कम देखने को मिलते है।(Unseen Story about Lal bahadur shastri)

लाल बहादुर शास्त्री का नाम लेते ही एक श्रेष्ट प्रतिमूर्ति का चित्रण हो जाता है क्युकी वे सादगी और सरलता से परिपूर्ण थे । वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देश के दूसरे प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी कोई कल्पना नहीं कर सकता है कि वे इतने सादगी और सरलता से अपनी जिंदगी गुजारते होंगे। वो देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे, इसके बावजूद भी उन्होंने सरकार से कर्जा ले रखे थे, जोकि उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी (ललिता शास्त्री ) ने चुकाया। इस देश और दुनिया में जब-जब राजनेताओं की सादगी की मिसाल दी जाएगी, तब-तब शास्त्री जी का नाम सबसे पहले लिया जायेगा।

वैसे तो शास्त्री जी की पूरी जिंदगी ही रोचकता और किस्से-कहानियों से भरी हुई है। लेकिन आज उनकी जयंती पर कुछ ऐसे किस्से हैं जो शायद आपने सुने हों। आज हम उनही में से दो किस्से उनके जीवन से जुड़े हुए जानेगे।। (Unseen Story about Lal bahadur shastri)

सोचक तथ्य 1 :- जब शास्त्री जी ने ट्रैन के डिब्बे में से निकलवा दिये कूलर।।

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यह उस समय की बात है जब नेहरु सरकार में शास्त्री जी रेल मंत्री हुआ करते थे। उन्हें किसी सरकारी काम के कारन से अचानक मुंबई जाना था। उनको रेल मार्ग से जाने की इच्छा हुआ तो यात्रा के लिए उन्होंने रेल मार्ग को चुना, रेल अधिकारियों ने उनके इस सफर के लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा तैयार करवाया। रेलगाड़ी दिल्ली से निकली। जब गाड़ी चलने लगी तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि डब्बे में सामान्य पंखों के अलावा कुछ और भी इंतजाम किया गया है। क्योंकि बाहर गर्मी का मौसम था और भयानक लू चल रही थी।


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क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी?

वो इसके बारे में जानने की इच्छा जतायी तो उन्होंने इसके बारे में अपने निजी सहयोगी कैलाश बाबू से पूछे। की ऐसा क्यों ? कैलाश बाबू ने बताया कि, सर इस डिब्बे में आपकी सुविधा और आराम के लिए कूलर लगवाया गया है। शास्त्रीजी ने तिरछी निगाह से कैलाश बाबू को देखते हुए और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कूलर लगवाया गया है? वो भी बिना मुझे बताए? क्या और लोगों को गर्मी नहीं लगती होगी?

रेलगाड़ी रुकी मथुरा स्टेशन पर और रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवाया गया

शास्त्री जी ने आगे कहा कि लोगों का सेवक होने के कारन से तो मुझे भी थर्ड क्लास में सफर करना चाहिए, किन्तु यदि ऐसा नहीं हो सकता है तो जितना हो सकता है उतना तो मुझे करना चाहिए । उन्होंने कहा की आगे जिस भी जगह पर गाड़ी रुके सबसे पहले मेरी बोगी से इस कूलर को निकलवाया जाए। जिसके बाद मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवाया गया। कूलर निकलवाने के बाद ही ट्रेन आगे बढ़ी।

तो दोस्तों ये थी उनकी पहली कहानी अब चलते है दूसरी कहानी की और।

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भाई, आप के दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ी हो, उनमें से दिखाओ मुझे वही चाहिए

एक बार की बात है की शास्त्री जी को अपनी पत्नी ललिता शास्त्री के लिए साड़ी खरीदनी थी। तो वे एक दुकान में गए। दुकान का मालिक शास्त्री जी को देख-कर बेहद खुश हुआ। दुकान का मालिक उनके आने को अपना सौभाग्य माना और स्वागत-सत्कार किया। शास्त्री जी ने कहा, वे जल्दी में हैं और उन्हें चार-पांच साड़ियां चाहिए। दुकान का प्रबंधक शास्त्री जी को एक से बढ़ कर एक साडियां दिखाने लगा, साडियां काफी कीमती और महंगी थी।

साड़ियों की कीमत देखकर शास्त्री जी बोले- भाई, मुझे इतनी महंगी साडियां नही चाहिए कम कीमत वाली दिखाओ। प्रबंधक ने कहा सर, आप इन्हें अपना ही समझिए, दाम की तो कोई बात ही नही है यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे दुकान पर पधारे। शास्त्री जी उसका आशय समझ गए उन्होंने कहा- मैं तो दाम देकर ही लूंगा, मैं जो तुमसे कह रहा हूं उस पर ध्यान दो और आप कम कीमत की साडियां ही दिखाओ और कीमत बताते जाओ। तब प्रबंधक ने थोड़ी सस्ती साडियां दिखानी शुरू की। शास्त्रीजी ने कहा ये भी मेरे लिए महंगी ही है, और कम कीमत की दिखाओ।

प्रबंधक एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच कर रहा था

प्रबंधक एकदम सस्ती साड़ी दिखाने में संकोच कर रहा था। शास्त्रीजी प्रबंधक को भांप गए। उन्होंने कहा- दुकान में जो सबसे सस्ती साड़ी हो, उनमें से दिखाओ मुझे वही चाहिए। आखिरकार प्रबंधक ने उनके मन मुताबिक साडियां निकाली शास्त्रीजी ने उन सबसे सस्ती साड़ियों में से कुछ साड़ियों चुनी और कीमत अदा कर चले गए।

लाल बहादुर शस्त्री के किस्से पढ़ कर आप सब को कैसा लगा कमेंट मई अवश्य बातये गए l

तो ऐसे थे हमारे सादगी और सरलता से परिपूर्ण शास्त्री जी l

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ेने के लिये l

 

                                              Written by Kumar Anubhav...

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