Privatization is Good or Bad for India

 

Part 3:- Privatization is Good or Bad for India

नमस्कार आदाब सत श्री अकाल आ गया है आपका होस्ट एंड दोस्त कुमार अनुभव लेकर के कि क्या प्राइवेटाइजेशन भारत के लिए सही है या गलत इस आर्टिकल में जो कि ए आर्टिकल पार्ट 3 है इसमें हम ओवरऑल बात करने वाले हैं कि फेस 1 के बारे में फेस 2 के बारे में और फेस 3 के बारे में । फेस 1 और 3 यह दोनों कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में लिए गए फैसले थे जिसमें से हम देखेंगे कि कैसे यूपीए सरकार ने 2004 के बाद एनडीए सरकार खत्म होने के बाद कैसे प्राइवेटाइजेशन को खत्म कर दिया और इसके बाद आने वाला है इस आर्टिकल का पार्ट 4 जिसमें कि हम यह जानेंगे कि जो कि हमारे हॉट टॉपिक का हेडलाइन है की "प्राइवेटाइजेशन क्या सही है या गलत है भारत देश के लिए" अगर आप इस ब्लॉक चैनल पर नए हैं तो इस ब्लॉग को फॉलो करें और आपको यह आर्टिकल से कुछ मदद मिल रही है सीखने के लिए तो इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर भी कीजिए। धन्यवाद।
चलिए शुरू करते हम आर्टिकल Privatization is Good or Bad for India

Privatization is Good or Bad for India


तो चलिए हम अब प्राइवेटाइजेशन के उन फेस इसके बारे में बात करते हैं जो कि 1991 में भारत सरकार के द्वारा उठाए गए थे।


फेस:- 1 (9191- 1999)


दोस्तों जैसे ही 1991 में एलपीजी रिफॉर्म्स लागू किए गए उसी के साथ सीपीएसईएस से की जाने वाली डिसइनवेस्टमेंट को भी कॉन्सेप्ट्लाइजेशन कर लिया गया था लेकिन उसके बाद भी उस समय इंडियन गवर्नमेंट मैं इलाज स्केल प्राइवेटाइजेशन को करने के लिए एक झिझक सी थी और उस रिफॉर्म से रिलेटेड खुद को ऐसे कड़े फैसले लेने में सक्षम पा रहे थे जैसे यूके या फ्रांस में 1970 से 1980 में ले लिए गए थे यही कारण है कि हालांकि एलपीजी रिफॉर्म्स अंडर प्राइवेटाइजेशन की बात कही गई थी लेकिन इस से रिलेटेड पब्लिक पॉलिसी मेकिंग में इसकी जगह डिसइनवेस्टमेंट टर्म यूज़ किया गया ताकि किसी भी तरह के एडवर्स कनोटेशन (ख्याति सूचना) को अवॉइड किया जा सके साथ ही इसका बड़ा कारण यह भी था कि सरकार इन सीपीएसईएस मैं अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए प्रयत्न सेल थी ना कि उनकी ओनरशिप प्राइवेट हैंड में देने मे। और इसीलिए इसी सिलसिले में बहुत से डिस्कशन हुए जिसमें डिसइनवेस्टमेंट और पॉलिसी कमिशन बनाई गई ताकि एक आउटलाइन तैयार की जा सके इंडिया और उसके पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग इस डिसइनवेस्टमेंट की क्या मायने हो सकती है साथी इंडियन इकोनामी के इस ऐतिहासिक मोड़ पर यह प्लेन करना भी जरूरी था कि डिसइनवेस्टमेंट की प्रोसेस के लिए किस तरह से पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज को सिलेक्ट किया जा सके और इस प्रक्रिया को कैसे लागू किया जा सकेगाPrivatization is Good or Bad for India

Privatization is Good or Bad for India


○इस चरण में सीपीएसई के शेयरों की नीलामी की गई और इस विनिवेश के लिए वैश्विक जमा रसीदें लागू की गईं। और इसके दौरान गवर्नमेंट का 39 सीपीएसईएस गवर्नमेंट शेयर होल्डिंग का एवरेज ऑन एवरेज 8.87percent ही और साथ ही किसी भी प्राइवेट पार्टी को किसी भी पीएसयू का कंट्रोल ट्रांसफर नहीं किया गया

तकइसी के कारण कॉमेंट डिसइनवेस्टमेंट को लेकर फिसकल ईयर 1993 से लेकर 1999 तक सेट किए गए अपने 39 हजार तीन सौ करोड़ अपने किए गए टारगेट को अचीव नहीं कर पाई बल्कि गवर्मेंट इससे आधे से भी कम मतलब 16809 करोड़ रजिस्टर कर पाई और साथ ही इसका बड़ा कारण यह भी था की कंप्लीट डिसइनवेस्टमेंट की जगह गवर्मेंट ने पब्लिक सेक्टर ऑयल कंपनी मैं क्रॉस होल्डिंग ट्रांजैक्शन भी किए यानी एक पीएसयू किसी दूसरे पीएसयू की हिस्सेदारी हो गई लेकिन फिर भी इस शेयर ऑक्शन का पॉजिटिव इफेक्ट दिए हुआ इस प्रोसेस ए पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज में इन्वेस्टमेंट में इंक्रीजस देखने को मिला जिसके चलते जहां 31 मार्च 1990 में सीपीएसईएस को टोटल इन्वेस्टमेंट 99315 करोड था वही फिसकल ईयर 1919 खत्म होते-होते यह 239167 करोड़ हो चुका था Privatization is Good or Bad for India

लेकिन यहां से प्राइवेटाइजेशन में एक नया मोड़ आया क्योंकि अब सेंट्रल में एनडीए की सरकार थी जो कि प्राइवेटाइजेशन को लेकर पॉजिटिव रुख रखती थी चलिए अब इसके फेस के बारे में भी चर्चा कर लेते हैं।

फेस-2:- (1999-2004)

दोस्तों यह वह फेस था जब सरकार सही मायनों में प्राइवेटाइजेशन को इंप्लीमेंट करने के लिए शुरू किया गया क्योंकि यहां से गवर्नमेंट ने पहली बार पी एस यू एस का स्ट्रेटजी स्केलअप शुरू किया यहां मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं की पी एस यू एस के स्ट्रेटजी स्केलअप का मतलब होता है की कॉमेंट अपने एक पी एस यू मे अपनी हिस्सेदारी को इतना कम कर ले कि उस पीएसयू का कंट्रोल गवर्मेंट के हाथों से निकलकर किस से दूसरे मेजॉरिटी शेयर होल्डर प्राइवेट एनटीटी के पास चला जाए इसके लिए दिसंबर 1999 में एक डेडीकेटेड डिपार्टमेंट ऑफ डिसइन्वेस्टमेंट बनाया गया ताकि प्राइवेटाइजेशन के प्रोसेस में और तेजी लाया जा सके और वहीं सितंबर 2001 में मिनिस्ट्री ऑफ दिस इन्वेस्टमेंट के तौर पर रिन्यू किया गया

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इस फेस के दौरान कॉमेंट ने 12 स्ट्रैटेजिक्स सेल्स इंप्लीमेंट किया जिसमें से 10 प्राइवेटाइजेशन डील किया गया जबकि दो सीपीएसई से सीपीएससी सेल्स थी उसके अलावा 20 होटल प्रॉपर्टीज का स्लंप सेल भी कर दिया गया साथ ही फेस वन के तरह इसमें भी आयल सेक्टर को क्रॉस होल्डिंग ट्रांजैक्शन कंटिन्यू किए गए जिससे डिबेट यह भी स्थापित हो गई कि इस तरह के ट्रांजैक्शन में क्या पब्लिक सेक्टर फॉर्म को इन्वेस्टमेंट डिसीजन लेने के लिए वह ऑटोनॉमी मिल पाएगी जिसके प्राइवेटाइजेशन को रिफॉर्म्स करने के लिए उम्मीद की जा रही थी इसी को ध्यान में रखते हुए 2002 में कॉमन एफसीपीएस इसमें पी एस यु एस में होने वाली डिसइनवेस्टमेंट में पार्टिसिपेट करने के लिए परमिशन इंपोज कर दिया गया लेकिन इसके बाद इस फेस हुए स्ट्रैटेजिक्स सेल्स के प्रोसेस को लेकर बहुत से कंट्रोवर्सी क्रिएट हुए जो कि पहला था  Privatization is Good or Bad for India पीएससी उसका वैल्यू का मेथड दूसरा था ट्रांजैक्शंस के को लेकर होने वाली ली गई डिस्प्यूट्स और साथ ही इन ट्रांजैक्शन के सिलसिले में सीएजी एडवर्स रिमार्क्स यही नहीं तेजी से होते इस डिसइनवेस्टमेंट में इंडस्ट्रियल सेक्टर में लेवर अनरेस्ट देखने को भी मिलने लगा था जो प्राइवेटाइजेशन के चलते हुए होने वाले जॉब होने वाली हो रहा था इन सब के कारण फिसकल ईयर 2002 से 2004 गवर्नमेंट केवल 24619 करोड रुपए रिलाइज कर पाई जबकि उसका टारगेट 58500 करोड़ था लेकिन फिर भी प्राइवेटाइजेशन की फेस की सबसे बड़ी भूल एयर इंडिया का प्राइवेटाइजेशन ना करना ही था जिसके आगे जाकर गंभीर परिणाम हुए लेकिन उसके बारे में हम इस आर्टिकल के अंत में बात करेंगे

फेस 3:- (2004-2014)

दोस्तों जैसे ही 2004 एनडीए की जगह यूपीए ने अपनी सरकार बनाई प्राइवेटाइजेशन को मान हो फिर से एक ब्रेक लग गया दरअसल ऐसा इसलिए था क्योंकि पॉलिसी में फिर से एक बार रिवॉल्यूशन देखने को मिला जिसके चलते सीपीएसईएस पब्लिक कैरेक्टर ऑफ गवर्नमेंट कंट्रोल को कंटिन्यू रखा गया साथ ही जैसा कि मैंने बताया पिछली फेस में बहुत से पी एस यू एस के स्टैट्रिक्स डिसइनवेस्टमेंट किए गए Privatization is Good or Bad for India  वही उसके इस फेस में डिसइनवेस्टमेंट और पॉलिसी को केस 2 केस बेसिस पर डिसाइड होने लगी और साथ ही गवर्नमेंट ने यह फैसला किया कि प्रॉफिट मेकिंग पीएसयू है जोकि प्रॉफिट करके देता था पीएसयू है उसको पब्लिक सेक्टर में ही रखा जाएगा ना किसको प्राइवेटाइजेशन किया जाएगा यही नहीं गवर्नमेंट पॉलिसीज में सीपीएससी से ऑन होने वाले रेवेन्यू को एक्सप्रेस सिटी सोशल सेक्टर स्कीम्स में मतलब की जनता की सेवा के लिए उस रेवेन्यू को बर्बाद किया गया जिसका उपयोग वह सही ढंग से करते तो आज की सिचुएशन कुछ और ही होती

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अगर हम इस पूरे फेस 3 के स्ट्रेटेजिक को देखते हैं तो इसमें किसी भी पीएसयू को स्ट्रेटेजिक सेल नही किया गया । और साथ ही गवर्नमेंट के द्वारा जो टारगेट डिसइनवेस्टमेंट के लिए रखा गया था जिसमें 1,93,300 करोड रुपए के बजाय केवल 1,14,045 करोड़ रुपए ही रेवेन्यू जेनरेट किया गया।


Written by Kumar Anubhav....

Privatization is Good or Bad for India


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In English Context....

Hello Adab Sat Sri Akal has come, your host and friend Kumar Anubhav taking whether privatization is right or wrong for India, in this article which is an article part 3, in this we are going to talk overall that face 1 about face About 2 and about Phase 3. Phase 1 and 3 These were both the decisions taken under the leadership of the Congress government, out of which we will see how the UPA government ended the privatization after the NDA government ended after 2004 and after that part 4 of this article is coming. In which we will know that which is the headline of our hot topic that "Privacyization is right or wrong for the country of India" If you are new on this block channel then follow this blog and you will get some help from this article. To learn, then share it as much as possible. Thank you.
Let us start the article Privatization is Good or Bad for India

So let us now talk about those faces of privatization which were taken by the Government of India in 1991.


Phase:- 1 (9191- 1999)


Friends, as soon as the LPG reforms were implemented in 1991, the disinvestment from CPSES was also conceptualized, but even after that there was a hesitation in the Indian government to do treatment scale privatization and with that reform The concerned were finding themselves able to take tough decisions like those taken in the UK or France in the 1970s to 1980s that is why although there was talk of LPG reforms under privatization, it has been replaced by disinvestment in public policy making. The term was used to avoid any kind of adverse notation and also because the government was trying to reduce its stake in these CPSES and not to give their ownership in private hands. In. And that is why many discussions took place in this connection in which disinvestment and policy commission was formed so that an outline could be prepared for India and its public sector undertaking What could be the meaning of this disinvestment fellow Indian economy At this historic juncture it is also necessary to do this plane Was that how public sector enterprises can be selected for the process of disinvestment and how this process can be implemented(Privatization is Good or Bad for India)

In this phase the shares of CPSEs were auctioned and for this disinvestment, Global Depository Receipts were introduced. And during this 39 CPSES of the Government on average 8.87 percent of the Government shareholding and also control of any PSU was not transferred to any private party.

Due to this, the government could not achieve its target of 39 thousand three hundred crores set for comment disinvestment from the fiscal year 1993 to 1999, but the government was able to register less than half of it means 16809 crores and also its big The reason was also that instead of complete disinvestment, the government also did cross-holding transactions in a public sector oil company, ie one PSU became a stake in another PSU, but still this share auction gave a positive effect. There was an increase in the year, due to which the total investment of CPSES was 99315 crores as on 31st March 1990, it was 239167 crores by the end of the fiscal year 1919.

But from here there was a new turn in privatization because now there was an NDA government in the central which used to take a positive attitude about privatization, now let's discuss about its face also.

Phase-2:- (1999-2004)

Friends, this was the face when the government was started to implement privatization in the true sense because from here the government started the strategy scaleup of PSUS for the first time, here let me tell for your information that the strategy of PSUS Scale-up means that Koment reduces its stake in one of its PSUs to such an extent that the control of that PSU should be transferred from the hands of the government to another majority shareholder private NTT, for this, in December 1999, a dedicated department of disinvestment was created to speed up the process of privatization and was renewed as the ministry of this investment in September 2001

During this phase, Koment implemented 12 strategic sales, out of which 10 were privatization deals, two were CPSC sales from CPSEs, in addition, 20 hotel properties were also slumped, as well as cross-holding the oil sector like Phase One. The transactions were continued, setting up a debate as to whether such a transaction would allow the public sector form the autonomy to take the investment decision that was expected to reform privatization in 2002. In Common FCPS, permission was imposed to participate in disinvestment in PSUS, but after this, many controversies were created about the process of strategic sales, which was first, PSC was its method of value second Not only this, the disputes regarding the transactions as well as the CAG Adverse Remarks in relation to these transactions are not only fast, this disinvestment has also seen a level of unrest in the industrial sector. I started getting what happened due to privatizationDue to all this, the government was able to release only Rs 24619 crores while its target was 58500 crores, but still the biggest mistake of the face of privatization is not to privatize Air India. Which had serious consequences going forward, but we will talk about it at the end of this article.


Phase 3:- (2004-2014)


Friends, as soon as the UPA formed its government instead of NDA in 2004, privatization again took a break, in fact it was because once again the revolution was seen in the policy, due to which the CPSES Public Character of Government Control was kept with Same as I mentioned in the previous phase many PSUs' statistics were disinvested, in this phase the disinvestment and policy got decided on case 2 case basis and also the government decided that it is profit making PSU which is The PSU used to give profit, it will be kept in the public sector itself, which will not be privatized, not only this, in the government policies, the revenue generated from the CPSC in the Express City Social Sector Schemes means that the revenue was wasted for the service of the public. Had he used it correctly, today's situation would have been different.


If we look at the strategic of this entire phase 3, then no PSU was strategically sold in this. And at the same time, instead of the target set by the government for disinvestment, revenue was generated only Rs 1,14,045 crore instead of Rs 1,93,300 crore.

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